शनिवार, 24 अक्टूबर 2020

डाँ. बलदेव महत्व

डाँ. बलदेव महत्व
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राजू पांडेय,ख्याति प्राप्त लेखक



डॉ बलदेव का निधन छत्तीसगढ़ के साहित्य जगत में जो रिक्त स्थान छोड़ गया है उसकी पूर्ति असंभव है।
डॉ बलदेव ने शोध और अन्वेषण के जो उच्च मानक स्थापित किए थे, उन्हें स्पर्श करने की कल्पना भी कठिन है।
छत्तीसगढ़ के साहित्यिक और सांस्कृतिक वैभव को सामने लाने के लिए छत्तीसगढ़ की चर्चित-अचर्चित विभूतियों के सुदूर ग्रामों में जाकर पांडुलिपियों का संग्रहण और अन्य प्रदेशों में जाकर अनेकानेक पुस्तकालयों में महीनों बिताते हुए इन मनीषियों पर दुर्लभ सामग्री का संकलन- यह सब इतना परिश्रम साध्य था कि उनके समर्पण को देखकर चमत्कृत हो जाना पड़ता है।
यदि आज छायावाद के प्रवर्तक पद्मश्री पंडित मुकुटधर पाण्डेय पर प्रामाणिक शोध सामग्री वर्तमान शोध छात्रों हेतु उपलब्ध है तो इसका सम्पूर्ण श्रेय डॉ बलदेव को है। राजा चक्रधर सिंह और रायगढ़ के कथक घराने पर उनका शोध चमत्कृत कर जाता है। रायगढ़ की साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिए केवल एक ही रास्ता है और वह डॉ बलदेव के अन्वेषण परक लेखों से होकर गुजरता है।
बतौर आलोचक डॉ बलदेव ने कितने ही युवा और उदीयमान साहित्यकारों को हाथ पकड़ कर लिखना सिखाया और गुमनामी के अंधकार में खो चुकी कितनी ही विभूतियों को वह सम्मान दिलाया जिसकी वे अधिकारी थीं।
डॉ बलदेव अपने जीवन में खूब छले गए, उनके मौलिक शोध कार्य का श्रेय अन्य लोगों ने लेने की कोशिश की। किन्तु न तो डॉ बलदेव हतोत्साहित हुए न उन्होंने किसी के प्रति मनोमालिन्य रखा।
बतौर रचनाकार छत्तीसगढ़ी भाषा को समृद्ध करने के लिए उन्होंने हर विधा में गुणवत्तापूर्ण लेखन किया और छत्तीसगढ़ी वाङ्गमय को समृद्ध किया।
आज जब वे नहीं हैं तो उनके शिष्यों का यह दायित्व बनता है कि वे अपने 'बलदेव सर' की परंपरा को आगे बढ़ाएं और छत्तीसगढ़ महतारी की गौरव स्थापना में योगदान दें।
डॉ बलदेव के योग्य सुपुत्र श्री बसंत राघव पर न केवल अपने पिता द्वारा संकलित दुर्लभ पांडुलिपियों को सुरक्षित रखने अपितु डॉ बलदेव की अनेक अधूरी शोध परियोजनाओं को पूर्ण करने का उत्तरदायित्व है। हमें पूर्ण विश्वास है कि वे इस कठिन कार्य को अपने पिता के सूक्ष्म संरक्षण में सहजता से संपादित कर सकेंगे।
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