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पाषाण जैसी जिन्दगी
नरम घास कहाँ तलाश करुँ
सर्द अंधेरी रात है,
सूर्य -किरण कहाँ तलाश करुँ
रिसता है घाव
बहुत गहरा
हंसने के बहाने
कहाँ तलाश करुँ
नदियों में गटरों का गन्दा जल
पतित पावनी कहाँ
कहाँ तलाश करुँ
हर शख्स है यहाँ जाना-पहचाना
नया इंसान कहाँ
कहाँ तलाश करुँ
दग़ा दे गया कोई सपना
सच्चाई कहाँ तलाश करुँ
दग़ा दे गया कोई अपना
दर्दे दिल कहाँ तलाश करुँ
गोखरु गड़ रहे पांवों में
बियाबान में लोचनी कहाँ तलाश करु
हमसफर हमराज हो गये
तुरुप का बेगम कहाँ तलाश करुँ
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बसन्त राघव
पंचवटी नगर, बोईरदादर,रायगढ़,
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