शनिवार, 15 अप्रैल 2017

गाँव (कविता)बसन्त राघव

गांव 
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 मैं तो गांव जातेंव संगवारी 
 गांव जातेंव शहर म जीव असकट होगे
 मैं तो गांव जातेंव महतारी के अंचरा ल धर के 
 मैं पाछू पाछू किंदरतेंव 
बनके सुरता कर कर मैं लइका बनतेंव 
गली के धुर्रा माटी म लोट पोट होके मैं खेलतेंव 
 जिहाँ जिहाँ खेलौं मैं भंवरा अउ बांटी
 उहें जाके खेलतेंव मैं फेर भंवरा बांटी 
पीपर के पीपरी ल बिन बिन मैं खातेंव 
उल्हा पाना पीपर के सीसरी बजातेंव
 मैं तो गांव जातेंव.... 
 गिया गांठी के संगे संगे बटुरा के खेत म उतरतेंव 
नइ तो बरछा म पेल के कुसियार ल चुहकतेव 
गातेंव में साल्हो ददरिया अउ बनतेंव मैं कन्हैया सुआ - भोजली के गीत सुन के साध लगथे 
संगवारी मोर मैं तो गांव जातेंव
 साध हांवे अउ बड़का ठाकुर देव के चौरा म ढुलगंतेंव 
चढ़े परसाद जेकर हेर हेर खातेंव 
ठाकुर देव ल ठगतेंव थोरकन थोरकन ठगातेंव।
 सुरता आथे संगवारी मोर गांव 
 चंदा -सुरुज , तलाव पोखरी तिरैया संझा के याद आथे सुरता आथे कोइली के कूक अउ तोता मैना के मिठ्ठ बोली के मन होथे संगी पंड़की परेवा कस उड़ जातेंव गाँव म
  मैं तो गांव जातेंव संगवारी 
 मैं तो गांव जातेंव । 
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 बसन्त राघव पंचवटी नगर,बोईरदादर,रायगढ़,छत्तीसगढ़ मो.न. 9039011458 ं -- Sent from Fast notepad